Tuesday, October 29, 2019

मध्य प्रदेश में विधान परिषद के गठन की राह नहीं आसान

एमपी में इन दिनों विधान परिषद के गठन को लेकर चर्चाएं जोरों पर है इसको लेकर राज्य सरकार ने एक बैठक भी बुलाई है लेकिन अगर देखें तो इस पूरी प्रक्रिया को जानने के बाद यह साफ जाहिर है कि मध्य प्रदेश में विधान परिषद का गठन इतना आसान नहीं है और उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बीजेपी फिलहाल इस मूड में कहीं भी नहीं नजर आ रही कि वह विधान परिषद के गठन को समर्थन दें लेकिन आपको बता दें कि इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में मंजूरी जरूरी है और फिलहाल जितने फीसदी सहमति की जरूरत इन दोनों सदनों में पड़ेगी उतने मत कांग्रेस के पास नजर नहीं आते हालांकि  मुख्यमंत्री कमलनाथ जब भी किसी प्रक्रिया में आगे बढ़ते हैं तो अपने मैनेजमेंट से इसमें सफलता पा ही लेते हैं ऐसे में सिर्फ सीएम कमलनाथ की भूमिका के चलते यह माना जा रहा है कि विधान परिषद का मध्य प्रदेश में गठन हो सकता है आइए आपको बताते हैं किस तरीके से होता है विधान परिषद का गठन
जिस तरह संसद में राज्य सभा ऊपरी सदन है और लोक सभा निम्न सदन है, उसी तरह राज्यों में विधान परिषद को उच्च सदन और विधान सभा को निम्न सदन कहा जाता है। देश के सात राज्यों, आंध्रप्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद है। वहीं राजस्थान और असम को भारत की संसद ने अपने स्वयं के विधान परिषद बनाने की मंजूरी दे दी है।
 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169,171(1) एवं 171(2) में विधान परिषद के गठन का प्रावधान है। इसके गठन के लिए सम्बन्धित राज्य की विधान सभा में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव को संघीय संसद के पास भेजा जाता है। इसके बाद अनुच्छेद 171(2) के अनुसार लोक सभा एवं राज्य सभा साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित करती हैं जिसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हेतु उनके पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही विधान परिषद के गठन की मंजूरी मिल जाती है।
 
राज्य सभा की तरह ही विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्षों का होता है, लेकिन प्रत्येक दो साल के बाद एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल ख़त्म हो जाता है। राज्य सभा की तरह ही विधान परिषद भी एक स्थायी सदन है जो कि कभी भंग नहीं होता है।
 
किसी भी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की संख्या उस राज्य की विधान सभा में स्थित सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से ज़्यादा नहीं होना चाहिए साथ ही किसी भी कारण से इसमें कम से कम 40 सदस्य होना जरूरी है। लेकिन जम्मू और कश्मीर की विधान परिषद में जम्मू और कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 50 द्वारा 36 सदस्यों की व्यवस्था की गई है।
 
विधान परिषद के लगभग एक तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से चुने जाते हैं जो इसके सदस्य नहीं हैं। वहीं एक तिहाई सदस्यों को निर्वाचिका द्वारा चुना जाता है, जिसमें नगरपालिकाओं के सदस्य, जिला बोर्डों और राज्य में अन्य प्राधिकरणों के सदस्यों सम्मिलित होते हैं।
 
वहीं एक बटा बारह सदस्यों का चुनाव ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जिन्होंने कम से कम तीन वर्षों तक राज्य के भीतर शैक्षिक संस्थाओं (माध्यमिक विद्यालयों से नीचे नहीं) में अध्यापन किया है। अन्य एक बटा बारह (1/12) का चुनाव पंजीकृत स्नातकों द्वारा किया जाता है जो तीन वर्ष से अधिक समय पहले पढ़ाई समाप्त कर चुके हैं। बाकी बचे सदस्यों को राज्यपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आन्दोलन और सामाजिक सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाता है।
 
विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए किसी को भी भारत का नागरिक होना जरूरी है। उसकी आयु कम से कम 30 साल की होना चाहिए। मानसिक रूप से असमर्थ और दिवालिया नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त उस क्षेत्र, जहां से वो चुनाव लड़ रहा है वहां की मतदाता सूची में उसका नाम होना चाहिए। उस समय वो संसद का सदस्य नहीं होना चाहिए।

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