Thursday, January 19, 2017

GST -जान लिजिये वो सब कुछ जरा गौर से,बदल गये पाले

GST---खेल खेल मे खेल हो गया ....MP TIMES-exclusive

understand GST in new view

ये तय हो गया है   कि जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) अब 1 जुलाई 17 से लागू हो जायेगा. जीएसटी में करदाताओं पर प्रशासनिक अधिकार के मुद्दे पर 16 जनवरी को जीएसटी काउंसिल की बैठक में सहमति बन गई है.
जेटॅलीजी ने वो खेल खेला की साँप भी मर गया और लाठी भी नही टुटी -इस मसौदे पर केंद्र सरकार ने राज्यों की मांगों को स्वीकार कर लिया है. जिस पर वे शुरू में अड़े हुए थे. इससे जाहिर होता है कि असल में केंद्र सरकार की मंशा जीएसटी को लागू करने की नहीं थी.
केंद्रीय बजट चुनावो के पहले क्यो----
यदि दिसंबर में इन विवादित मुद्दों पर सहमति बन जाती, तो सरकार विकल्पहीन हो जाती और 1 अप्रैल से जीएसटी लागू करना उसकी नियति बन जाती. इसके अपने बड़े खतरे थे. पहला जीएसटी की घोषणा से बजट की लोक लुभावन प्रस्तावों की गूंज कम हो जाती, क्योंकि जीएसटी को पिछले कई दशकों का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार माना जाता है.
दूसरा जीएसटी में सर्विस टैक्स की मानक दर 18 फीसदी है, जो अभी 15 फीसदी है. यानी सर्विस टैक्स 3 फीसदी ज्यादा हो जाएगी. पान मसाला, तंबाकू, सिगरेट, कोका कोला, पेप्सी जैसे पेय पदार्थों पर टैक्स 40 फीसदी हो सकता है.

MP Times exclusive
पांच राज्यों के चुनाव हर बड़े राजनीतिक दल के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. खास कर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव. इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी समेत कई बड़े नेताओं का भविष्य दांव पर लगा हुआ है. अब बड़ी चतुराई से इन जोखिमों पर मोदी सरकार ने पानी डाल दिया है.
अब नहीं होगा फंड का टोटा
जीएसटी के जुलाई से लागू होने से केंद्र सरकार के टैक्स कलेक्शन में कोई भारी कमी नहीं आयेगी. हो सकता है अब वित्त मंत्री आगामी बजट में उत्पाद शुल्क, सर्विस टैक्स की दरों से ज्यादा छेड़छाड़ न करें. क्योंकि  केंद्र सरकार के टैक्स रेवेन्यू में पर्याप्त बढ़ोतरी की उम्मीद अब बढ़ गई है.


मनभावन, लोक लुभावन घोषणाओं और इनकम टैक्स में छूट के लिये भी अब वित्त मंत्री के पास फंड का कोई टोटा नहीं रहेगा. हां, सितंबर तक जीएसटी के टल जाने से जरूर वित्त मंत्री को पर्याप्त फंड जुटाने में पसीने छूट जाते.
वित्त मंत्री ने बड़ी होशियारी से जीएसटी को टाल भी दिया और संभावित आर्थिक-राजनीतिक नुकसान से अपनी सरकार और पार्टी को बचा भी लिया.

छोटी इकाईयो पर राज्यो ने की थी कर मे पुर्णाधिकार की मांग---
तटीय राज्यों की मांग थी कि समुद्री कारोबार के 12 नॉटिकल मील (समुद्र में दूरी मापने की इकाई) तक टैक्स के प्रशासनिक अधिकार राज्य को मिलने चाहिए. पर केंद्र सरकार अपना यह अधिकार छोड़ने को राजी नहीं थी.

लेकिन अब केंद्र सरकार ने राज्यों की मांगों को लगभग जस का तस मान लिया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार अब डेढ़ करोड रुपए सालाना कारोबार करने वाली 90 फीसदी इकाइयों के जीएसटी करदाताओं पर राज्य का नियंत्रण रहेगा. बाकी 10 फीसदी इकाइयों पर केंद्र का.
डेढ़ करोड़ रुपए सालाना से अधिक कारोबार करने वाली इकाइयों पर केंद्र और राज्य सरकार बराबर का नियंत्रण रखेगी. यानी 50-50. इसके अलावा तटीय राज्यों की 12 नॉटिकल मील तक टैक्स वसूली की मांग को केंद्र ने अब मान लिया है, जो अप्रत्याशित है. यानी कुल मिलाकर केंद्र ने राज्यों की माँगों के आगे आत्म समर्पण कर दिया है.
कांग्रेस इधर और भाजपा उधर -----
इस योजना  को शुरू से ही बीजेपी और कांग्रेस बार-बार राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करती रही है. इससे भी इस कर व्यवस्था को लागू होने में अनावश्यक रूप से भारी विलंब हुआ है.

हालंकि UPA सरकार ने सबसे  सबसे पहले ये प्रस्ताव 2000 में लाया  था. 2008 में इस टैक्स की अवधारणा पर काम शुरू हो गया. कांग्रेस अपने शासन के दौरान ही इसे लागू करना चाहती थी. इसे लागू करने की तारीख का ऐलान तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने कर दिया था.
पर तब  बीजेपी ने हर स्तर पर इसमें अड़ंगा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस कर का विरोध करने में  तात्कालीन गुजरात के सी एम नरेंद्र मोदी सबसे आगे थे. लेकिन वक्त बदला और पाले बदल गये......

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