इन दिनो
समाजवादी पार्टी में चल रहा पारिवारिक संकट हर रोज एक नया करवट ले रहा है। मंगलवार को दिल्ली में जहां अखिलेश ग्रुप की ओर से रामगोपाल यादव अपना पक्ष रखने के लिए चुनाव आयोग पहुंचे। वहीं लखनऊ में मुलायम सिंह के घर पर अखिलेश और मुलायम की तीन घंटे से भी ज्यादा देर तक बैठक चली। बताया जा रहा है कि पार्टी के दो फाड़ होने और मुलायम-अखिलेश के आमने-सामने आ जाने के बाद राजनीतिक नफा-नुकसान भी देखा जा रहा है।
शुरुआत में तो ऐसा लगा कि अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी चुनाव में उतरेगी तो उसे लाभ होगा, लेकिन अब ये बातें भी सामने आ रही हैं कि मुलायम के जीते जी समाजवादी पार्टी का उनके बिना कोई मतलब नहीं। इसीलिए यदि इन कयासों में भी सच्चाई है कि ये सब जो हो रहा है वो मुलायम सिंह की रणनीति का हिस्सा है तो भी शायद पार्टी को नुकसान ही हो।
बात यदि मुलायम खेमे की हो तो बेटे अखिलेश यादव की ओर से उन्हें हटाए जाने और मार्गदर्शक जैसी भूमिका दिए जाने के बाद आम कार्यकर्ताओं या दूसरे लोगों की हमदर्दी अब उनकी ओर आ चली है। एक पत्रकार ने बताया कि जिस अखिलेश का ग्राफ अभी तक एक आज्ञाकारी बेटे के रूप में ऊपर चढ़ा था, वो एकाएक नीचे आ गया और जाहिर तौर पर इससे मुलायम सिंह को लाभ मिला। ऐसी तमाम बातें हैं जिनसे पिछले दिनों हुए घटनाक्रम के बाद मुलायम खेमे को फायदा भी हुआ और नुकसान भी।
फायदा-
1. मुलायम को इस पूरे घटनाक्रम के बाद लोगों की हमदर्दी हासिल हुई कि पिता होने के नाते बेटे ने उनके साथ ठीक नहीं किया।
2. तमाम बुजुर्ग नेता अभी भी उनके साथ खड़े दिख रहे हैं, हालांकि कुछ लोग अखिलेश की ओर भी गए, लेकिन ये कहते हुए कि ऐसा वो नेताजी यानी मुलायम के कहने पर कर रहे हैं।
3. जानकारों का कहना है कि ऊपरी तौर पर भले ही ज्यादातर विधायक अखिलेश की ओर दिख रहे हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि न सिर्फ पार्टी का आम कार्यकर्ता बल्कि उसके परंपरागत मतदाता समुदायों के लोग भी मुलायम सिंह को ही नेता मानते हैं।
4. इस घटनाक्रम से मुलायम सिंह के ऊपर लगा यह दाग़ भी शायद छूट जाए कि वो खुद इस पारिवारिक ड्रामे को क्रिएट कर रहे हैं।
समाजवादी पार्टी में चल रहा पारिवारिक संकट हर रोज एक नया करवट ले रहा है। मंगलवार को दिल्ली में जहां अखिलेश ग्रुप की ओर से रामगोपाल यादव अपना पक्ष रखने के लिए चुनाव आयोग पहुंचे। वहीं लखनऊ में मुलायम सिंह के घर पर अखिलेश और मुलायम की तीन घंटे से भी ज्यादा देर तक बैठक चली। बताया जा रहा है कि पार्टी के दो फाड़ होने और मुलायम-अखिलेश के आमने-सामने आ जाने के बाद राजनीतिक नफा-नुकसान भी देखा जा रहा है।
शुरुआत में तो ऐसा लगा कि अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी चुनाव में उतरेगी तो उसे लाभ होगा, लेकिन अब ये बातें भी सामने आ रही हैं कि मुलायम के जीते जी समाजवादी पार्टी का उनके बिना कोई मतलब नहीं। इसीलिए यदि इन कयासों में भी सच्चाई है कि ये सब जो हो रहा है वो मुलायम सिंह की रणनीति का हिस्सा है तो भी शायद पार्टी को नुकसान ही हो।
बात यदि मुलायम खेमे की हो तो बेटे अखिलेश यादव की ओर से उन्हें हटाए जाने और मार्गदर्शक जैसी भूमिका दिए जाने के बाद आम कार्यकर्ताओं या दूसरे लोगों की हमदर्दी अब उनकी ओर आ चली है। एक पत्रकार ने बताया कि जिस अखिलेश का ग्राफ अभी तक एक आज्ञाकारी बेटे के रूप में ऊपर चढ़ा था, वो एकाएक नीचे आ गया और जाहिर तौर पर इससे मुलायम सिंह को लाभ मिला। ऐसी तमाम बातें हैं जिनसे पिछले दिनों हुए घटनाक्रम के बाद मुलायम खेमे को फायदा भी हुआ और नुकसान भी।
फायदा-
1. मुलायम को इस पूरे घटनाक्रम के बाद लोगों की हमदर्दी हासिल हुई कि पिता होने के नाते बेटे ने उनके साथ ठीक नहीं किया।
2. तमाम बुजुर्ग नेता अभी भी उनके साथ खड़े दिख रहे हैं, हालांकि कुछ लोग अखिलेश की ओर भी गए, लेकिन ये कहते हुए कि ऐसा वो नेताजी यानी मुलायम के कहने पर कर रहे हैं।
3. जानकारों का कहना है कि ऊपरी तौर पर भले ही ज्यादातर विधायक अखिलेश की ओर दिख रहे हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि न सिर्फ पार्टी का आम कार्यकर्ता बल्कि उसके परंपरागत मतदाता समुदायों के लोग भी मुलायम सिंह को ही नेता मानते हैं।
4. इस घटनाक्रम से मुलायम सिंह के ऊपर लगा यह दाग़ भी शायद छूट जाए कि वो खुद इस पारिवारिक ड्रामे को क्रिएट कर रहे हैं।
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