लखनऊ : दो फाड़ हो चुकी समाजवादी पार्टी में अब सुलह की कोशिशें तेज हो गई है और ये जिम्मा उठाया है आजम खान ने. दोनों ही खेमों ने बातचीत अब शर्तों पर आकर टिक गई है. मंगलवार को मुलायम और अखिलेश ने 4 घंटे की लंबी मुलाकात की, लेकिन समाधान नहीं निकल पाया. मुलायम के घर पर अखिलेश के साथ शिवपाल यादव भी मौजूद रहे, लेकिन तीनों नेताओं ने सुलह पर चुप्पी साधी रखी. बुधवार को फिर मुलायम सिंह के घर पर बैठक हुई. इसमें शिवपाल यादव और आजम खान भी शामिल हुए. लंबी चली मीटिंग के बाद आजम खान मुलायम के घर से वापस चले गए. आजम खान पार्टी में सुलह का फॉर्मूला लेकर सामने आए थे. आजम खान ने दोनों पक्षों से थोड़ी नरमी बरतने और चुनाव के लिए मिलकर काम करने की अपील की है. इस बैठक में नारद राय और ओमप्रकाश समेत कई नेता शामिल हुए. माना जा रहा है आजम खान इसके बाद अखिलेश यादव से मुलाकात कर आगे की संभावनाओं पर बात करेंगे.
दूसरी ओर अखिलेश भी अपने समर्थकों के साथ बैठक करेंगे और विवाद खत्म करने को लेकर दोबारा मुलायम से भी मुलाकात कर सकते हैं. सुलह पर आजम खान ने कहा कि नेताजी बहुत पॉजिटिव और नरम हैं, वो चाहते हैं विवाद खत्म हो. विवाद खत्म करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, कर लूंगा.
सुलह का 'आजम' फॉर्मूला
1.मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहें,अखिलेश अपना दावा वापस ले लें.
2.अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष की कमान वापस दे दी जाए और टिकट बंटवारे में उनकी अहम भूमिका रहे.
3.शिवपाल यादव को दिल्ली में राष्ट्रीय महासचिव बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में भेज दिया जाये.
4.मुलायम के अमर और अखिलेश के रामगोपाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए.
खबरों की मानें तो मुलायम अब अमर सिंह को पार्टी के अंतरराष्ट्रीय मामलों का प्रभारी बनाने के लिए तैयार हैं, जबकि शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश छोड़कर राष्ट्रीय मामलों को देखेंगे. वहीं अखिलेश उम्मीदवारों के बारे में फैसला करने के लिए स्वतंत्रता दी जाएगी.
दरअसल कई मौकों पर लगा कि पिता-पुत्र की जोड़ी भले ही मानने को तैयार हो जाती हो, लेकिन जानकारों के मुताबिक जिन शक्तियों से पिता और पुत्र अलग-अलग घिरे हैं, कहीं ना कहीं वो सुलह में रोड़ा बन कर सामने आ जाती है. मुलायम की कमजोरी अमर और शिवपाल हैं, तो वहीं अखिलेश का हाथ रामगोपाल के साथ है. लखनऊ में पिता-पुत्र की मुलाकात के बाद दिल्ली में रामगोपाल यादव के घर अखिलेश गुट की बैठक हुई और रामगोपाल यादव ने सुलह की सारी संभावनाओं को खारिज भी कर दिया. हालांकि पार्टी के सांसद जावेद अली का कहना है कि पार्टी में कोई झगड़ा नहीं है और नेताजी ही उनके आदर्श हैं.
साइकिल तो अब अखिलेश की: नरेश अग्रवाल
सपा में अखिलेश गुट के नेता नरेश अग्रवाल ने आज तक के साथ खास बातचीत में कहा कि साइकिल तो अब अखिलेश की है. साइकिल समाजवादी पार्टी की है. यह दो अलग-अलग साइकिल देश में बह रही दो विचारधारा को दर्शाती है. एक मेहनतकश बुज़ुर्ग लोगों की और दूसरी युवा शक्ति की. नौजवानों की सोच को अवॉयड नहीं किया जा सकता. नये ज़माने की साइकिल को भी आगे आना चाहिए. साइकिल पर कौन सवारी करता है यह तो चुनाव आयोग ही बतायेगा. लेकिन समाजवादी नेताओं के घर में नई साइकिल ने जगह बना ली है.
अधिकांश विधायक हमारे साथ: रामगोपाल
मंगलवार को चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद रामगोपाल यादव ने बताया कि हमने अपना पक्ष रखा. रामगोपाल यादव ने कहा कि हमारे साथ पार्टी के 90 फीसदी विधायक और 80 से 90 फीसदी डेलीगेट्स हैं. इसलिए असली समाजवादी पार्टी वो है जिसके अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं. इसलिए अखिलेश यादव की अध्यक्षता वाली पार्टी को ही समाजवादी पार्टी माना जाए.
चुनाव आयोग में मुलायम का पक्ष मजबूत
मुलायम सिंह यादव के करीबी सूत्र ने बताया है कि चुनाव आयोग में मुलायम का पक्ष मजबूत है, क्योंकि पार्टी से बाहर के सदस्यों द्वारा अधिवेशन बुलाना असंवैधानिक है. सिर्फ पार्टी अध्यक्ष ही अधिवेशन बुला सकता है. अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को एसपी में वापस लेने का निर्णय किसी पेपर पर नहीं लिया गया था. उनका निष्कासन वापस लिया जा सकता था, लेकिन उन्होंने अधिवेशन बुला लिया.
किरनमय नंदा ने किया नया खुलासा
इस बीच मुलायम सिंह द्वारा समाजवादी पार्टी से निकाले गए पुराने भरोसेमंद किरनमय नंदा ने आरोप लगाया है कि 1 जनवरी को जारी दो पत्रों में मुलायम सिंह यादव के दस्तखत अलग-अलग हैं. इस बयान के बाद साइन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है. गौरतलब है कि 1 जनवरी को अखिलेश गुट ने लखनऊ में अधिवेशन कर अखिलेश यादव को सपा अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था. इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने इस अधिवेशन को असंवैधानिक बताते हुए दो नेताओं किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकालने का आदेश जारी किया था और कहा था कि सपा के अध्यक्ष अभी मुलायम सिंह ही हैं. अब किरनमय नंदा के इस बयान से मामले ने नया मोड़ ले लिया है.
दूसरी ओर अखिलेश भी अपने समर्थकों के साथ बैठक करेंगे और विवाद खत्म करने को लेकर दोबारा मुलायम से भी मुलाकात कर सकते हैं. सुलह पर आजम खान ने कहा कि नेताजी बहुत पॉजिटिव और नरम हैं, वो चाहते हैं विवाद खत्म हो. विवाद खत्म करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, कर लूंगा.
सुलह का 'आजम' फॉर्मूला
1.मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहें,अखिलेश अपना दावा वापस ले लें.
2.अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष की कमान वापस दे दी जाए और टिकट बंटवारे में उनकी अहम भूमिका रहे.
3.शिवपाल यादव को दिल्ली में राष्ट्रीय महासचिव बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में भेज दिया जाये.
4.मुलायम के अमर और अखिलेश के रामगोपाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए.
खबरों की मानें तो मुलायम अब अमर सिंह को पार्टी के अंतरराष्ट्रीय मामलों का प्रभारी बनाने के लिए तैयार हैं, जबकि शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश छोड़कर राष्ट्रीय मामलों को देखेंगे. वहीं अखिलेश उम्मीदवारों के बारे में फैसला करने के लिए स्वतंत्रता दी जाएगी.
दरअसल कई मौकों पर लगा कि पिता-पुत्र की जोड़ी भले ही मानने को तैयार हो जाती हो, लेकिन जानकारों के मुताबिक जिन शक्तियों से पिता और पुत्र अलग-अलग घिरे हैं, कहीं ना कहीं वो सुलह में रोड़ा बन कर सामने आ जाती है. मुलायम की कमजोरी अमर और शिवपाल हैं, तो वहीं अखिलेश का हाथ रामगोपाल के साथ है. लखनऊ में पिता-पुत्र की मुलाकात के बाद दिल्ली में रामगोपाल यादव के घर अखिलेश गुट की बैठक हुई और रामगोपाल यादव ने सुलह की सारी संभावनाओं को खारिज भी कर दिया. हालांकि पार्टी के सांसद जावेद अली का कहना है कि पार्टी में कोई झगड़ा नहीं है और नेताजी ही उनके आदर्श हैं.
साइकिल तो अब अखिलेश की: नरेश अग्रवाल
सपा में अखिलेश गुट के नेता नरेश अग्रवाल ने आज तक के साथ खास बातचीत में कहा कि साइकिल तो अब अखिलेश की है. साइकिल समाजवादी पार्टी की है. यह दो अलग-अलग साइकिल देश में बह रही दो विचारधारा को दर्शाती है. एक मेहनतकश बुज़ुर्ग लोगों की और दूसरी युवा शक्ति की. नौजवानों की सोच को अवॉयड नहीं किया जा सकता. नये ज़माने की साइकिल को भी आगे आना चाहिए. साइकिल पर कौन सवारी करता है यह तो चुनाव आयोग ही बतायेगा. लेकिन समाजवादी नेताओं के घर में नई साइकिल ने जगह बना ली है.
अधिकांश विधायक हमारे साथ: रामगोपाल
मंगलवार को चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद रामगोपाल यादव ने बताया कि हमने अपना पक्ष रखा. रामगोपाल यादव ने कहा कि हमारे साथ पार्टी के 90 फीसदी विधायक और 80 से 90 फीसदी डेलीगेट्स हैं. इसलिए असली समाजवादी पार्टी वो है जिसके अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं. इसलिए अखिलेश यादव की अध्यक्षता वाली पार्टी को ही समाजवादी पार्टी माना जाए.
चुनाव आयोग में मुलायम का पक्ष मजबूत
मुलायम सिंह यादव के करीबी सूत्र ने बताया है कि चुनाव आयोग में मुलायम का पक्ष मजबूत है, क्योंकि पार्टी से बाहर के सदस्यों द्वारा अधिवेशन बुलाना असंवैधानिक है. सिर्फ पार्टी अध्यक्ष ही अधिवेशन बुला सकता है. अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को एसपी में वापस लेने का निर्णय किसी पेपर पर नहीं लिया गया था. उनका निष्कासन वापस लिया जा सकता था, लेकिन उन्होंने अधिवेशन बुला लिया.
किरनमय नंदा ने किया नया खुलासा
इस बीच मुलायम सिंह द्वारा समाजवादी पार्टी से निकाले गए पुराने भरोसेमंद किरनमय नंदा ने आरोप लगाया है कि 1 जनवरी को जारी दो पत्रों में मुलायम सिंह यादव के दस्तखत अलग-अलग हैं. इस बयान के बाद साइन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है. गौरतलब है कि 1 जनवरी को अखिलेश गुट ने लखनऊ में अधिवेशन कर अखिलेश यादव को सपा अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था. इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने इस अधिवेशन को असंवैधानिक बताते हुए दो नेताओं किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल को पार्टी से निकालने का आदेश जारी किया था और कहा था कि सपा के अध्यक्ष अभी मुलायम सिंह ही हैं. अब किरनमय नंदा के इस बयान से मामले ने नया मोड़ ले लिया है.
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